वृन्दावन (मथुरा)। चरित्र निर्माण और उसकी उत्कृष्टता ग्रहण करने योग्य वस्तु है और उसकी आवश्यकता तथा उपयोगिता चर्चा की वस्तु है। यम और नियम चुनौती पूर्ण विश्व व्यापक संक्रामक महामारी कोविड-19, 20 की श्रंखला को तोड़ने में शारीरिक दूरी बनाये रखने से कही अधिक कही प्रभावी और महत्वपूर्ण है। यम और नियम ही विश्वव्यापी कोविड महामारी की सस्ती सर्व सुलभ दवा और प्राकृतिक संक्रमण निरोधी वैक्सीन है।
यह बात वृन्दावन के ख्याति प्राप्त विद्वान सन्त डॉ० कृष्ण मुरारी (स्वामी जी) ने गत 21 जुलाई को भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रेषित पत्र में कहीं और आने वाले 15 अगस्त से देश के सभी नागरिकों को यम (सामाजिक अनुशासन) तथा नियम (व्यक्तिगत अनुशासन) पालन को अनिवार्य करने की अपील की है।
प्रेषित पत्र में स्वामी जी ने पतंजलि योग सूत्र तथा श्रीमद्भागवत के खंड 11 अध्याय 19 सूत्र 33-35 का हवाला देते हुये कहा कि यम और नियम अष्टांग योग के क्रमश प्रथम व द्वितीय पद है तथा इनके बगैर अष्टांग योग में आगे की वांछित प्रगति सम्भव नहीं है। स्वामी ने प्रेषित पत्र में यह भी स्पष्ट किया कि अधिकांश योग शिविरों में आसन (शारीरिक व्यायाम) और प्राणायाम (श्वसन प्रक्रिया) पर भी ध्यान दिया जाता है।
जबकि आसन और प्राणायाम का सम्बन्ध व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य से ही होता है, इसका सम्बन्ध न तो सर्व समाज से होता है और न ही चरित्र निर्माण के विज्ञान से। वास्तविकता तो यह है कि अधिकांश योग शिक्षकों द्वारा अष्टांग योग के मानकों का हनन किया जा रहा है। भगवान कृष्ण व महर्षि पतंजलि के अनुसार अष्टांग योग के पूर्ण मानको का पालन न करने पर भारी आपत्तियों व विपत्तियों का आगाज होता है क्योंकि इसका दुष्प्रभाव धीमे जहर की तरह होता है।
स्वामी जी ने प्रेषित पत्र में राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री को अपने यम और नियम कार्यशाला शिविर में आमंत्रित करते हुए उन्हें बताया कि एक घंटा चलने वाली इस कार्यशाला में एक साथ हिंदी, संस्कृत तथा अंग्रेजी भाषा में व्याख्यान दिया जाता है।
स्वामी जी ने देश की 130 करोड़ जनता के स्वास्थ्य हित के साथ कोविड संक्रमण से मुक्ति दिलाने के लिए देश के राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री से आगामी 15 अगस्त से यम-नियम के पालन को देश में अनिवार्य करने की मांग की है।